Sunday, 3 June 2012


मित्रो!
             
           मैं भीम, सुजानगढ़ की यात्रा करते हुए पुनः लोहिया महाविद्यालय, चूरू पहुँच गया हूँ । इस यात्रा के अनेक खट्टे-मीठे अनुभव, स्मृति मञ्जूषा में सजे हुए हैं। इस कालावधि में पारिवारिक चुनौतियाँ भी आईं, परन्तु साथियों के सहयोग से रास्ता निकलता गया। पुनः चूरू पहुँचने में अनेक ज्ञात-अज्ञात व्यक्तियों का प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष संबल और सहयोग मिला, उन सबका आभार कैसे व्यक्त करूँ?

           मूल प्रशन अभी वहीं खड़ा है कि चूरू में स्थान उपलब्ध होते हुए भी मैं  अनावश्यक तंग हुआ । यद्यपि नौकरी में स्थान विशेष किसी की बापौती नहीं , अतः किसी के आने पर मुझे कहीं जाना पड़ता तो कोई कष्ट  नहीं होता ।  मैंने अपने जीवन में सदैव सकारात्मक सोच रखी, कभी किसी का अहित नहीं किया । यह आत्मप्रशंसा नहीं बल्कि मेरी जीवन दृष्टि का सूचक है। मैंने कभी संकीर्णता नहीं रखी, विभिन्न धाराओं के बीच संवाद और समन्वय का प्रयत्न किया तो मुझे  सदैव यह प्रतिदान क्यों?  यह प्रश्न मुझे सालता रहा। भक्त नहीं होते हुए भी मैंने यह प्रश्न ईश्वर को समर्पित किया, तभी मुझे शान्ति मिली, और यह मानसिकता दृढ़ हुई कि मैं अपना काम करूँ, अगला अपना। मुझे इस दौरान ही अहसास हुआ कि कोई  मेरा भी शत्रु  हो सकता है ,  मैं तो हर जातक में मित्र की छवि के ही दर्शन करता हूँ । समता की ऊँचाई से, प्रतिशोध की ढलान की ओर फिसलने से रुकने में  सदैव की तरह अब भी ईश्वर मेरी मदद करेगा!
         
           आप सबका अभिवादन!

Wednesday, 7 December 2011

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

सरकार को अचानक धार्मिक भावनाओं की चिंता क्यों सताने लगी है? स्वयं के पाठ्यक्रमों में अनेक आपत्तिजनक बातें सम्मिलित हैं , उनका ध्यान दिलाने वालों को दकियानूसी घोषित करती है! देवी के नग्न चित्रों में इन्हें कला के दर्शन हो रहे थे , विरोध करने पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में लग रही थी . आज क्या संकट आ गया है? इनकी मंशा में खोट दिखाई देता है, आतंकवादियों, कालाधनवालों से इनको कोई शिकायत नहीं, बस इनके विरुद्ध कुछ मत बोलो, और सब कुछ ठीक है!

Monday, 24 October 2011

भाषा के सन्दर्भ में

भाषा के सन्दर्भ में प्रत्येक स्तर पर सावधानी बरती जानी चाहिए. प्रचलित शब्दों को एक समर्थ भाषा अंगीकृत करती ही है, निश्चय ही सतर्कतापूर्वक और प्रामाणिकता से. नई तकनीकी संज्ञाओं आदि को भी, भले ही वो कहीं से आई हों, अंगीकृत करना किसी भाषा का वैशिष्ट्य है, विकृति नहीं. भाषा के विकास को नकारना नहीं चाहिए, हाँ, प्रतिष्ठित विद्वानों के मार्गदर्शन में,इसकी एक निर्धारित प्रक्रिया अवश्य होनी चाहिए. अन्धानुकरण या घोर सुविधापरस्ती का रास्ता उचित नहीं है, तो जड़वादी मानसिकता भी सही नहीं.

Monday, 15 August 2011

जज़्बा सीने में है कि नहीं,
मक़सद जीने में है कि नहीं,
'कमल' माटी में सना बदन,
तरबतर पसीने में है कि नहीं.

Sunday, 12 June 2011

बाबा रामदेवजी के अनशन के सन्दर्भ में केंद्र सरकार ने घोर असंवेदनशीलता का परिचय दिया है .
वक़्त आने पर इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. जो लोग बाबा की कार्यशैली के समर्थक नहीं हैं,
उन्हें भी यह सब अच्छा नहीं लगा.

Thursday, 28 January 2010

इस माटी का हर कण मेरा
हर युग मेरा , हर क्षण मेरा
प्राण न्यौछावर धरती माँ को
घोषित कर दूँ यह प्रण मेरा.
स्वार्थ- साधना साधक क्यों हम
निज सुख के आराधक क्यों हम
समग्र चेतना खंडित कर-कर
समरसता में बाधक क्यों हम?