Wednesday, 7 December 2011

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

सरकार को अचानक धार्मिक भावनाओं की चिंता क्यों सताने लगी है? स्वयं के पाठ्यक्रमों में अनेक आपत्तिजनक बातें सम्मिलित हैं , उनका ध्यान दिलाने वालों को दकियानूसी घोषित करती है! देवी के नग्न चित्रों में इन्हें कला के दर्शन हो रहे थे , विरोध करने पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में लग रही थी . आज क्या संकट आ गया है? इनकी मंशा में खोट दिखाई देता है, आतंकवादियों, कालाधनवालों से इनको कोई शिकायत नहीं, बस इनके विरुद्ध कुछ मत बोलो, और सब कुछ ठीक है!

Monday, 24 October 2011

भाषा के सन्दर्भ में

भाषा के सन्दर्भ में प्रत्येक स्तर पर सावधानी बरती जानी चाहिए. प्रचलित शब्दों को एक समर्थ भाषा अंगीकृत करती ही है, निश्चय ही सतर्कतापूर्वक और प्रामाणिकता से. नई तकनीकी संज्ञाओं आदि को भी, भले ही वो कहीं से आई हों, अंगीकृत करना किसी भाषा का वैशिष्ट्य है, विकृति नहीं. भाषा के विकास को नकारना नहीं चाहिए, हाँ, प्रतिष्ठित विद्वानों के मार्गदर्शन में,इसकी एक निर्धारित प्रक्रिया अवश्य होनी चाहिए. अन्धानुकरण या घोर सुविधापरस्ती का रास्ता उचित नहीं है, तो जड़वादी मानसिकता भी सही नहीं.

Monday, 15 August 2011

जज़्बा सीने में है कि नहीं,
मक़सद जीने में है कि नहीं,
'कमल' माटी में सना बदन,
तरबतर पसीने में है कि नहीं.

Sunday, 12 June 2011

बाबा रामदेवजी के अनशन के सन्दर्भ में केंद्र सरकार ने घोर असंवेदनशीलता का परिचय दिया है .
वक़्त आने पर इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. जो लोग बाबा की कार्यशैली के समर्थक नहीं हैं,
उन्हें भी यह सब अच्छा नहीं लगा.